पित्तरोग


 अतिसार(दस्त) – मैत्रायणी आदि संहिताओं में उपवाक या
उपवाका का भेषज के रूप में वर्णन है । इसका अर्थ इन्द्रयव ( इन्द्र जौ) लिया
गया है । इसके ही कुटज, कुटजबीज आदि नाम हैं | भावप्रकाश में इसे त्रिदोषनाशक,
ज्वर, अतिसार तथा कुष्ठ विकारों का नाशक कहा गया है । पाश्चात्त्य विद्वानों के
अनुसार सफेद कुटज की छाल रक्तातिसार (खूनी पेचिश) की अत्युत्तम ओषधि है ।
यह ज्वर, ग्रहणी (पेचिश), रक्तपित्त, पेट के कीड़े, दमा, गुर्दों में दर्द में हितकर
है ।
ऋग्वेद आदि में विभीदक (बहेड़ा) का उल्लेख है । यह त्रिफला में प्रयुक्त
तीन द्रव्यों में से एक है । यह अतीसार, शोथ, अर्श, कुष्ठ और प्लीहावृद्धि में सेवन
करने योग्य है ।
अथर्ववेद आदि में बिल्व (बेल) का उल्लेख है।
पका बेल रसायन और
रेचक है । यह कब्ज की उत्तम दवा है । अधपके बेल का क्वाथ ( काढ़ा ) अतिसार
(दस्त) रक्तातिसार (खूनी पेचिश) और आम (आंव) में उपयोगी है । बेल का मुरब्बा
दस्त और पेचिश की घरेलू दवा है ।

शांखायन गृह्यसूत्र में मधूक (महुआ) का उल्लेख है ।
 ● महुए के फूल का
रस रसायन है । यह अतीसार (दस्त) और ग्रहणी (पेचिश) में लाभप्रद है। इसके
फूल के क्वाथ (काढ़ा) को शर्करा के साथ पान करने से प्यास, अतिसार और कास
दूर होते हैं ।
●यजुर्वेद में बदर (बेर) का उल्लेख है । इसके सत्तू का भी उपयोग होता
है । पाश्चात्त्य मत है कि बेर की छाल प्रदर और अतिसार में ताल बीज के साथ
दी जाती है । 
 ऋग्वेद आदि में पर्ण शब्द पलाश (ढाक) वृक्ष के लिए आया है ।
●पलाशपत्र रसायन है । यह अतिसार, रक्तप्रदर और कृमिशूल रोगों के प्रयुक्त होता
है।

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